मुख्य पृष्ठ - विभाग - पवन ऊर्जा संसाधन निर्धारण और अपतटीय पवन ऊर्जा (WRA&O)
राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संसाधन की पवन ऊर्जा संसाधन निर्धारण और अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं का उद्देश्य पवन ऊर्जा उपयोग के विकास के लिए क्षेत्र मापन के माध्यम से देश में पवन ऊर्जा की त्वरा गति की संभावना वाले क्षेत्रों की खोज करना है। इस प्रकार देश के सभी भागों से संग्रहित आँकड़ों को राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संसाधन एटलस की तैयारी के लिए समेकित किया जाना है। उपर्युक्त के अतिरिक्त, पवन ऊर्जा के उत्पादन के लिए मॉडल और उपग्रह सूचना जैसी अन्य तकनीकों का उपयोग करते हुए भूमि और अपतटीय पवन ऊर्जा के सभी पवन ऊर्जा संसाधन से संबंधित अध्ययनों का भी उपयोग किया जाना चाहिए। विश्व में वर्तमान में उपलब्ध नवीनतम और अग्रिम प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके देश में अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं के विकास से संबंधित गतिविधियों में प्रगति की जा रही है।
भारत सरकार के द्वारा वर्ष 1985 में राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संसाधन मूल्यांकन कार्यक्रम के अंतर्गत देश में पवन ऊर्जा उत्पादन योग्य स्थलों की पहचान करने हेतु शुभारम्भ किया गया। राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संसाधन निर्धारण कार्यक्रम तैयार करने में पवन ऊर्जा उत्पादन योग्य क्षेत्रों का चयन, उपयुक्त उपकरणों का क्रय, अभिकल्प और निर्माण , 20 मीटर ऊँचे मस्तूल , चयनित स्थलों पर उनकी स्थापना और आँकड़ा संग्रह और प्रसंस्करण आदि मुख्य थे। प्रत्येक राज्य की राज्य नोडल एजेंसी के द्वारा भी उपर्युक्त कार्यक्रम के कार्यान्वयन में सक्रिय रूप से भाग लिया गया। राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (पूर्व में पवन ऊर्जा प्रौद्योगिकी केंद्र) की स्थापना चेन्नई में की गई थी और तदपश्चात राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संसाधन निर्धारण कार्यक्रम को राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान में हस्तांतरित कर दिया गया और तद्पश्चात भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे (FRU-IITM, पुणे) की फील्ड रिसर्च यूनिट की उपर्युक्त गतिविधियों को समाप्त कर दिया गया। उपर्युक्त के पश्चात वर्ष 2001 से, उपर्युक्त राष्ट्रीय पवन संसाधन मूल्यांकन निर्धारण कार्यक्रम, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की ओर से, राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के द्वारा निष्पादित किया जा रहा है। उपर्युक्त कार्यक्रम के अंतर्गत, राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के द्वारा पूर्ण समर्पित बहुस्तरीय पवन ऊर्जा संसाधन आँकड़ा एकत्रित करने हेतु 50 मीटर, 80 मीटर, 100 मीटर और 120 मीटर ऊँचाई के लिए पवन ऊर्जा टरबाइन संस्थापित किए जा रहे हैं।
भारत के सभी राज्यों और प्रमुख केंद्र शासित प्रदेशों में उपर्युक्त कार्यक्रम कार्यांवित किए जा रहे हैं। प्रति वर्ष और अधिक पवन ऊर्जा टरबाइन स्टेशनों को जोड़ा जा रहा है जिससे कि राज्यों के अछूते अथवा नए अधिक खुले क्षेत्रों का वैज्ञानिक रूप से अध्ययन किया जा सके; एकत्र किए गए आँकड़े, आँकड़ा बैंक के रूप में राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संभावित मानचित्रों और अन्य अनुसंधान उद्देश्यों के लिए भी कार्य करते हैं। उपर्युक्त कार्यक्रम के अंतर्गत, ( दिसंबर 2018 तक ) संचयी रूप से 877 स्टेशन संस्थापित किए जा चुके हैं। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के द्वारा राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के माध्यम से राज्य नोडल एजेंसियों के साथ उपर्युक्त परियोजनाएं सतत कार्य कर रही हैं।
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के द्वारा, उपर्युक्त कार्यक्रम के एक अँश के रूप में और हितधारकों के हित को ध्यान में रखते हुए, पवन ऊर्जा के आँकड़ों की उपलब्धता की प्रामाणिक उपलब्धता का विवरण प्रदान करने हेतु इन्हें एक पुस्तक रूप में प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया। उपर्युक्त के अंतर्गत पवन ऊर्जा आँकड़ा संग्रह की पुस्तकों को 9 खंडों में प्रकाशित किया गया है, इनमें वास्तविक पवन ऊर्जा मापन और उन जगहों की व्यापक जानकारी प्रदान की गई हैं जहां उपर्युक्त कार्य किए गए हैं।
उपर्युक्त अध्ययन के परिणाम के एक अंश के रूप में मापन और मेसो-स्केल मॉडल के आधार पर पवन ऊर्जा घनत्व मानचित्र तैयार किए गए हैं। वर्ष 2005 में, 50 मीटर की ऊँचाई पर 10 राज्यों के लिए पवन ऊर्जा विद्युत क्षमता की संभावित मान्यताओं के लिए अनुमानित किया गया था। निजी स्थानों पर WPD के असतत आँकड़ों से भूमि के एक विस्तारित क्षेत्र पर पवन ऊर्जा की क्षमता का अनुमान लगाया गया है। वर्ष 2010 में, राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के द्वारा मैसर्स RISO-DTU, डेनमार्क के संयुक्त प्रयास से भारतीय पवन ऊर्जा एटलस तैयार किया गया, जिसमें कार्लसरुहे वायुमंडलीय मेसो-स्केल मॉडल (KAMM) नामक तकनीक के माध्यम से बहुत परिष्कृत मेसो-स्केल मॉडलिंग तकनीक का उपयोग किया गया था। तदपश्चात वर्ष 2015 में, राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के द्वारा 100 मीटर ऊँचाई पर ( भूमि स्तर से ऊपर ) भारतीय पवन ऊर्जा संभावित मानचित्र तैयार किया गया है।
100 मीटर ऊँचाई के भूमि स्तह से ऊपर ( एजीएल ) संभावित पवन ऊर्जा विद्युत |
भारत सरकार के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के मार्गदर्शन और निर्देशानुसार राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के द्वारा वैज्ञानिक प्रक्रियाओं का पालन करते हुए 100 मीटर हब ऊंचाई पर, पूर्ण भारत में भौगोलिक दृष्टि पर आधारित भूमि का और पवन ऊर्जा के प्रामाणिक नवीनतम उपलब्ध आँकड़ों के साथ-साथ भारत की पवन ऊर्जा संभावना का आकलन किया गया। भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित वर्ष 2022 तक 60,000 मेगावॉट पवन ऊर्जा के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में नीति निर्धारकों, निजी हितधारकों, सरकारी एजेंसियों और उद्योग जगत के अन्य हितधारकों के लिए यह जानकारी आवश्यक है। राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (पूर्व में पवन ऊर्जा प्रौद्योगिकी केंद्र) के द्वारा, RISO-DTU डेनमार्क के सहयोग से, पूर्व में ही संभावित अनुमानित अध्ययन निष्पादन कार्य किया गया; जिसके द्वारा मेसो-स्केल व्युत्पन्न पवन ऊर्जा मानचित्रों और सूक्ष्म-मापन को प्रमाणित किया गया और 50 मीटर ऊँचाई हेतु भारतीय पवन ऊर्जा एटलस ज़ारी की गई, और अप्रैल 2010 में 80 मीटर ऊंचाई पर हब, 5 किलोमीटर रिज़ॉल्यूशन सूचक के साथ कार्य किया गया।
भारत सरकार के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के मार्गदर्शन और निर्देशों के अनुसार राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के द्वारा उन्नत मॉडलिंग तकनीकों का चयन किया गया और यथार्थवादी एवं व्यावहारिक धारणाओं के साथ इस अध्ययन की पुनरीक्षा की गई और 302 मीटर गीगावॉट के रूप में 100 मीटर ऊंचाई पर पवन ऊर्जा क्षमता का अनुमान लगाया गया। उपर्युक्त का पूर्ण विवरण प्राप्त किया जा सकता है : पवन ऊर्जा विद्युत संभावना 100 मीटर ऊँचाई, भूमि स्तह से ऊपर।
भारत देश का सौभाग्य है कि उसके तीन ओर लगभग 7600 किलोमीटर लम्बी समुद्रतटीय रेखा है जो कि पानी से घिरी हुई हैं। उपर्युक्त समुद्रतटीय रेखा से अपतटीय पवन ऊर्जा के दोहन की उज्ज्वल संभावनाएं अधिक हो जाती हैं। भारत सरकार के द्वारा ज़ारी दिनांक 06 अक्टूबर 2015 की राजपत्र अधिसूचना के अनुसार ‘राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति’ अधिसूचित की गई और अपतटीय पवन ऊर्जा के दोहन के लिए देश के विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) हेतु एक नीतिगत संरचना प्रदान करने के लिए कहा गया। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय को भारत में अपतटीय पवन ऊर्जा के विकास के लिए नोडल मंत्रालय के रूप में नामित किया गया है; और राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान को देश में अपतटीय पवन ऊर्जा के विकास के लिए नोडल एजेंसी के रूप में चिन्हित किया गया है।
राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के द्वारा 74 मौसम मस्तूल मापन और उपग्रह आँकड़ा निर्धारण प्रक्रिया के माध्यम से गुजरात समुद्रतट और तमिलनाडु समुद्रतट की भारतीय समुद्रतट रेखा के साथ प्रारंभिक ऑकलन किया गया है जिसमें अपतटीय पवन ऊर्जा की संभावना दिखाई दी है। प्रारंभिक ऑकलन को मान्य करने के लिए राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के द्वारा धनुषकोडी, रामेश्वरम की समुद्रततीय रेखा में 100 मीटर ऊंचा जालीदार मस्तूल संस्थापित किया गया है, श्रीलंका देश की ओर, यह क्षेत्र एक छोटा- सा भू-भाग है जो कि तीन दिशाओं में पानी से घिरा हुआ है। राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के द्वारा सीमांकित क्षेत्रों में मैसर्स FOWIND परियोजना के अंतर्गत पवन ऊर्जा की संभावना को सत्यापित करने हेतु गुजरात तट पर खंभात की खाड़ी में माह नवंबर 2017 में आँकड़ा मापन के साथ मैसर्स LiDAR आधारित अपतटीय पवन ऊर्जा मापन के कार्य का शुभारम्भ किया गया।
खंभात की खाड़ी में LiDAR मापन कार्य |
राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के द्वारा गुजरात में खंभात की खाड़ी में प्रस्तावित एक गीगावॉट अपतटीय पवन ऊर्जा उत्पादन परियोजना के लिए लगभग 365 वर्ग किलोमीटर ( मैसर्स FOWPI परियोजना के अंतर्गत 70 वर्ग किलोमीटर ) में भूभौतिकीय सर्वेक्षण किया गया है; जिसके अंतर्गत प्रस्तावित गहराई पर उपलब्ध उपतल और गहराई पर मृदा प्रोफाइल का पता लगाया गया है, जिसे प्रस्तावित गहराई पर, एक गीगावॉट की अपतटीय पवन ऊर्जा टरबाइन क्षेत्र परियोजना के लिए, अपतटीय पवन ऊर्जा टरबाइन संरचनाओं की नींव एवं डिज़ाइन हेतु सुनिश्चित किया गया है।
राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के द्वारा मौसम-महासागर मापन परियोजना के अंतर्गत गुजरात तट और तमिलनाडु राज्य के समुद्र - तटवर्ती क्षेत्रों में LiDAR आधारित अपतटीय पवन ऊर्जा संसाधन निर्धारण कार्य करने का प्रस्ताव है। उपर्युक्त के अतिरिक्त, राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के द्वारा गुजरात राज्य और तमिलनाडु राज्य के समुद्र - तटवर्ती क्षेत्रों में LiDAR प्लेटफार्मों या आसपास के उपयुक्त स्थानों या LiDAR प्लेटफार्मों के बाहर की स्थितियों को समझने के लिए ऑशनोग्राफिक / हॉइड्रोग्राफिक मापन करने का प्रस्ताव किया गया है, जिनकी परिकल्पना समान रूप से संस्थापना और अन्य सर्वेक्षण गतिविधियों की योजना के लिए और प्रचालन एवं रखरखाव की योजना, मौसम संबंधी गतिविधियाँ और अपतटीय पवन ऊर्जा टरबाइन की नींव संरचना और अभिकल्प के लिए आवश्यक हैं। उपर्युक्त मापन कार्य के परिणामस्वरूप पवन ऊर्जा की संभावनाओं को निर्धारित करने और अपतटीय पवन ऊर्जा ब्लॉकों के प्रभावी सीमांकन के लिए फास्ट-ट्रैक पद्धति से समुद्र तट वाले राज्यों को समझने में सहायता मिलेगी।
गुजरात राज्य में मापन के लिए 2 स्थान, जोन ‘ए’ और ज़ोन ‘ बी 2 ’ , चिन्हित किए गए हैं।
तमिलनाडु राज्य में मापन के लिए 2 स्थान, जोन ‘ बी 1’ और ज़ोन ‘डी 1’ , चिन्हित किए गए हैं और आवश्यक अनुमति प्राप्त करने की प्रक्रिया आरम्भ कर दी गई है।/p>
भारत सरकार के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने में, नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन की विश्वसनीय पृष्ठभूमि की जानकारी, भौगोलिक भिन्नता, उपलब्धता में एक प्रमुख भूमिका निभाएगी। पवन ऊर्जा गति की ऊंचाई अधिक होने के साथ, हब ऊँचाई के विस्तार को पवन ऊर्जा टरबाइनों से ऊर्जा उत्पादन के प्रभावी समाधानों के रूप में देखा जा रहा है। तकनीकी प्रगति के साथ, आधुनिक पवन ऊर्जा टरबाइनों की ऊँचाई 120 मीटर से 130 मीटर तक कर दी गई है और हब की ऊँचाई में और अधिक वृद्धि किए जाने का अनुमान है जिसके लिए अधिक ऊँचाई के मानचित्रों की आवश्यकता होगी। अध्ययनों से यह भी ज्ञात होता है कि सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा एक दूसरे के पूरक हैं।
सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा वर्णसंकर की उपर्युक्त दोनों प्रौद्योगिकियों से भूमि और पारेषण प्रणाली सहित आधारभूत संरचना का श्रेष्ठतर उपयोग करने के अतिरिक्त परिवर्तनशीलता को कम करने में सहायता मिलेगी और इस संबंध में हितधारकों को भविष्य में उपयुक्त स्थलों की पहचान करने के लिए एक वर्णसंकर संभावित मानचित्र बहुत सहायक सिद्ध होगा। राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के द्वारा उन्नत संख्यात्मक मेसो-स्केल मॉडलिंग तकनीकों के माध्यम से संकेत देने योग्य नवीकरणीय ऊर्जा संभावित मानचित्र ( 120 मीटर और 150 मीटर ऊँचाई के पवन ऊर्जा मानचित्र और वर्णसंकर मानचित्र) तैयार करने का प्रस्ताव किया गया है और एकीकृत पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा मस्तूल और रिमोट सेंसिंग इन-सीटू भूमि मापन के साथ मानचित्रों को सत्यापित किया गया है जिससे कि भारत सरकार के द्वारा निर्धारित महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के द्वारा पवन ऊर्जा टरबाइन की निरंतर बढ़ती हुई ऊँचाई के समाधान हेतु 120 मीटर ऊँचाई के पवन ऊर्जा के पवन ऊर्जा संभावित मानचित्र तैयार करने की एक नई पहल का शुभारम्भ किया गया है।